"नुक्ता" बदतर हो गया

Author: Kapil Sharma / Labels:

सूरज रूठ गया, क्या हाल ऐ सहर हो गया
दश्त से भी वीरान, वाइज, तेरा शहर हो गया

कहीं बस जाने की तमन्ना को लेकर,
उसने कारवां जो छोड़ो, वो बेघर हो गया

जिद्द ज़माने को झुकाने की छोड़कर,
झुका जो भी ता सजदा अकबर हो गया

मंजिल की छाह भी,जल उठी तपिश से

चल दिल रुखसत ले, वक़्त ऐ सफ़र हो गया

इल्म रखता था,  शौक से दुनिया जहाँ का,
कुछ बात है, कई दिनों से  जरा बेखबर हो गया

सुना हैं निकम्मा था, पहले से बदनाम बहुत,
ऊपर से इश्क का बुखार, "नुक्ता" बदतर हो गया

4 comments:

@ngel ~ said...

इल्म रखता था, शौक से दुनिया जहाँ का,
कुछ बात है, कई दिनों से जरा बेखबर हो गया

सुना हैं निकम्मा था, पहले से बदनाम बहुत,
ऊपर से इश्क का बुखार, "नुक्ता" बदतर हो गया...

:) ishq ka bukhar
duniya se bekhabar
badnaam
aur badtar
wah ... ye na hue to hue hi kya... :)

Kapil Sharma said...

behad shukriya @ngel :)

एक बोर आदमी का रोजनामचा said...

JANAAB - MAQTE KAA SHE'R GAZAB DHAA RAHAA HAI -

WAISE HAR SHER APNE ME SAWA SHER HAI

BADHAAEEE - NUKTAA KO

Kapil Sharma said...

bahot shukriyaa Mukeshji :)

अंतर्मन