आँखों की गुफ्तगू

Author: Kapil Sharma / Labels:

कुछ और भी माइने हो,
ख़ामोशी तुम्हारे,
इसी एक गुमां के साथ
कितनी बार अश्कों को,
तुम्हारे हवाले किया था
आँखों की गुफ्तगू से
तब ही से यकीं जाता रहा
 

हाय रे बामन

Author: Kapil Sharma / Labels:

हाय रे बामन,
तुने मुझसे जाने कितीनी पूजा खा ली?
कितने मुझसे मंत्र पढाये?
किन किन के जाप रटाये?
जाने कितने पाप कराये?
हाय रे बामन,
कैसे कैसे रस्ते से तू,
परलोक के स्वप्न दिखलाये
पाप पुन्य का लेखा झोका
बनिए सा बखाये.
हाय रे बामन,

न जाने क्या है

Author: Kapil Sharma / Labels:

सब कुछ 
कह सुन 
लेने के बाद
सारे लेनदेन
से आगे
न जाने क्या है
जो छुट  जाता हैं?

इक उम्र

Author: Kapil Sharma / Labels:

इक उम्र तलाशें,
मोज़ज़े मैंने
इक उम्र तेरा,
इंतज़ार किया
इक उम्र रहा,
दौर ऐ हिज़्र
इक उम्र खुदको
बेजार किया

 

खुद को देख पाता

Author: Kapil Sharma / Labels:

अनसुलझे से चेहरे,
जवाब ढूँढती नज़रें
आईने के उस छोर  से
घूरते रहते हैं, हर रोज़
हर बार एक नया शक्स,
चौखट के पार से, 
सायल बन आ जाता हैं
छीलता हैं ज़ेहन को,
रूह को सालता हैं
कभी गुजरते, कभी गुजरे,
कभी आने वाले
वक़्त की बड़ी 
अजीब तस्वीर दिखाता हैं
...काश इस आईने के आगे मैं
कभी तेरी नज़रें लेकर, खुद को देख पाता 

पुराने कुछ अशआर मिले

Author: Kapil Sharma / Labels:

वर्खों में क़ैद इस तरह पुराने  कुछ अशआर मिले,
बरसों बाद, ज्यूँ, नाराजगी लिए दो यार मिले


चल ढूँढते हैं मिलकर लफ्ज़ नया जुदाई को,
बिछड़ते हुए लबों पे झिझक न इस बार मिले


वादे पर तेरे ऐतबार कर भी ले लेकिन,
इक और ज़िन्दगी का, फिरसे न इंतज़ार मिले


चाँद तलाशते जब भी नज़रों ने आसमान देखा
खुशफेहमियाँ बेचते, बस इश्तेहार मिले

"नुक्ता" बदतर हो गया

Author: Kapil Sharma / Labels:

सूरज रूठ गया, क्या हाल ऐ सहर हो गया
दश्त से भी वीरान, वाइज, तेरा शहर हो गया

कहीं बस जाने की तमन्ना को लेकर,
उसने कारवां जो छोड़ो, वो बेघर हो गया

जिद्द ज़माने को झुकाने की छोड़कर,
झुका जो भी ता सजदा अकबर हो गया

मंजिल की छाह भी,जल उठी तपिश से

चल दिल रुखसत ले, वक़्त ऐ सफ़र हो गया

इल्म रखता था,  शौक से दुनिया जहाँ का,
कुछ बात है, कई दिनों से  जरा बेखबर हो गया

सुना हैं निकम्मा था, पहले से बदनाम बहुत,
ऊपर से इश्क का बुखार, "नुक्ता" बदतर हो गया

"तुम कुछ कहते क्यों नहीं?"

Author: Kapil Sharma / Labels:

फिर खाली सफ्हे के सामने,
बैठा देती हैं, ये मज़बूरी,
ये तलब, लफ़्ज़ों में पिरोने की,
हर उस बेजुबान अरमान को,

हर उस बेशक्ल ख्वाब को,
अधुरी रात को, आसमान को,
आधे अधूरे माहताब को,
जो तुम्हारी गैर मौजूदगी में
मुझसे सिर्फ तुम्हारी बातें करते हैं
तुम्हारा हाल भी मुझसा होगा,
 इस बात का यकीं दिलाते हैं
तुम आओ या ना आओ,
चाहे न वादा करो, न निभाओ
तुम्हारा इंतज़ार करवाते हैं,

...और जब तुम रूबरू होती हो,
बेईमान दोस्तों की तरह,
मुझे बिलकुल खाली,
बिलकुल तनहा,
छोड़ कर चले जाते हैं,
बिलकुल निहत्ता,
तुम्हारे सवाल के सामने,
की "तुम कुछ कहते क्यों नहीं?"


इन लम्हों की मौत को सुना है

Author: Kapil Sharma / Labels:

इन लम्हों की मौत को सुना है
बरसों बरसों लगते हैं
यूँही दम नहीं तोड़ते ये,
हर डूबती साँस पे लड़ते है
कैसी कैसी उमीदों पर
जीते हैं और बढते है
इन लम्हों की मौत को सुना है
बरसों बरसों लगते हैं
ये लम्हें जब साँस तुम्हारी
मेरी साँसों में मिलती हैं
ये लम्हें जब ख़्वाब तुम्हारे
मेरी पलकों पे पलते हैं
इन लम्हों की मौत को सुना है
बरसों बरसों लगते हैं

सोचता हूँ अगर मैं दुवाँ माँगता

Author: Kapil Sharma / Labels:

सोचता हूँ अगर मैं दुवाँ  माँगता
हाथ अपने उठाकर मैं क्या माँगता
थक गयी जुबां, इस साहिल पे मेरी
अब के उस साहिल से सदां माँगता
मौत माँग लेता मैं खुदाया तुझसे
या इस बेजा ज़िन्दगी की वजा माँगता
जो बेरास्ता हो गया हैं सफ़र
बाकदम नयी ज़मी, आसमा माँगता
तू जो मशगुल इस जहाँ की फ़िक्र में
अपने लिए इक अलग खुदा माँगता
सोचता हूँ अगर मैं दुवाँ  माँगता
हाथ अपने उठाकर मैं क्या माँगता

कौन रंग

Author: Kapil Sharma / Labels:

कौन रंग मिट्ठी,
कौन रंग सोना,
कौन रंग की खुशियाँ,
कौन रंग का रोना?
प्रेम रंग की मिट्ठी,
प्रेम रंग सोना,
प्रेम रंग में जीवन सारा,
क्या हँसना, क्या रोना?
 

अंतर्मन