इस जाने पहचाने शहर के कई हिस्से,
जिनसे मेरे मरासिम ऐसे नहीं थे
अब मुझे गले लगाने दौड़ते है
जिन कुचों में मैं पहले नहीं गया
अब देख मुझे, एक तबस्सुम सी,
बेवजा चेहरे पे सज़ा लेते हैं
क्यों बता दिया...इसी शहर से गुजरी हो?
कई मर्तबा यूँ भी हुआ है,
मेरे ख़्वाबों में तुम, मेरे साथ,
हर उस जगह हो आये हो
जहाँ हम तुम कभी नहीं गए
कई दफा, कई रात दोराहाया है
ये ख़्वाब मैंने.
तुमने ही कहा था, ना
इक ख़्वाब को दोराहने से बारहा
वो हकीक़त बन जाता हैं?
...तुम सही थी, ए हकीक़त मेरी!!!
साँसों में
Author: Kapil Sharma / Labels: MEपल पल, लम्हा लम्हा
इतना यकीं साँसों में
छिपा आसमा पगला,
बावरी जमीं साँसों में
सब कुछ तो "नुक्ता" में
दे दिया, खुदाया
बना दी इक शक्स ने
फिर कैसे कमी साँसों में
जब भी देखा था उसको,
जुनूं में था, आज़ाद था
कल रात देखी हमने
कौन परस्ती साँसों में
तुम भी तो मौजूद वहां थे,
याद नहीं तुम्हे?
कितनी सारी सौंधी रातें,
अब हैं सुनी साँसों में
थके, रूठे, भीगे से काँधे,
तन्हा तन्हा तपती रात
रह का आगे हाल ना पूछो,
हाँ, साँस हैं थमी साँसों में
क्या क्या भरकर लाये थे
क्या छोड़ा, क्या संग किया?
तिनका तिनका रंज वो सारे
रेजा ये हसीं साँसों में