शेखजी का बतोला हैं

Author: Kapil Sharma / Labels:

इक मैं हुँ, इक मेरा मालिक,
मस्त-मौला हैं
बाकी सब किस्से, अफवाहें,
शेखजी का बतोला हैं
ख्वाब से एक वो जागा हैं,
या नया ख्वाब कोई खोला हैं
बेकल नज़र की
तश्ने रूहानी, कौन,
कहा तक टटोला हैं ?
कैसे बढ़ता ताप मनों का,
आतिशफ़िशाँ सा
ज़ेहनों दिल में
कैसे लावा खौला हैं ?
किसी जहाँ में,
किसी जंग में
फिर से
कान्हा बोला हैं
मैं सजदे में,
घुटनो के बल...
सारा मंज़र
इन आँखों ने
ना अब तक भुला हैं
इक मैं हुँ, इक मेरा मालिक,
मस्त-मौला हैं
बाकी सब किस्से, अफवाहें,
शेखजी का बतोला हैं


 

अंतर्मन