जब भी सुबह
अलसाकर पलकें खोलता हूँ
ए ख्वाब, तुझे
उस करवट लेटा देखकर
बेसबब बेवजा ही
मुस्कुरा देता हूँ
यूँ मिलने जहान की,
दौड़ धुप से
घर से कदम बाहर डालता हूँ
ए ख्वाब, तेरी आँखों
दुआ ए खैरियत देखकर
बेसबब बेवजा ही
मुस्कुरा देता हूँ
के जो कुफ्र सबाब से परे
फिर तूझी में सुकूं तलाशता हूँ
ए ख्वाब तुझे
खुद पर चादर सा ओढ़कर
बेसबब बेवजा ही
मुस्कुरा देता हूँ