कोई नज़्म बस होने को है

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फिर से महक उठा हैं
पुरानी खुशुबुओं से पैरहन
कोई नज़्म बस होने को है
हज़ार ख्यालों से हामला हैं ज़ेहन
कोई नज़्म बस होने को है
कुछ यादें बीते अरसे के,
लरज़ लबों पे, पलकों पे सावन
कोई नज़्म बस होने को है
गूँजता मैकदा, हुजूम से रिन्दों के,
बैठे हैं कोने में "नुक्ता"
लिए तन्हा प्यास, तन्हा धड़कन
कोई नज़्म बस होने को है 

मसरुफी

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मसरुफी तूने,

इस तरह लाचार कर दिया

इश्क के नाम,

एक दिन कर ,

सारी ज़िन्दगी को

मोहब्बत से

फारिग कर दिया

इक बाँवरा सा इंसा था

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शौहरत तेरे,
अंदाज़-ए-सुखन की
तुझको हो मुबारक शायर,
मुझे बस इतनी दुआ दो,
के हयात यूँ याद रख ले,
इक बाँवरा सा इंसा था,
बाँवरी बातें करता था

रात ने हैं रख ली गिरवी मुझसे

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ऐसे दौर -ए - खस्ता हाल ने,
सवाल ए चैनो सुकूं को दिया जवाब
रात ने हैं रख ली गिरवी मुझसे,
मेरी नींदें, चाँद और सारे ख्वाब

वो बनकर अब्र आये बरसाने मुझपर
अपनी रूह का आब औ' ताब
हम बदकिस्मत सूखे रह गए,
ले आँखों में अश्क़ हाथों में शराब

बस इक डर के वक़्त के थपेड़े,
मुरझा न दे गुलदस्ता ए हयात
चुन चुन कर रख लिए है उसने,
सब के सब कागज़ के गुलाब

पुर ख्व़ाब निगाहें

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पुर ख्व़ाब निगाहें, दिल अरमानों से लबरेज
हज़ार हसरतों भरा आसमान हैं, हश्र अब उड़ानें हैं,
बस  गर साथ दे जाये हौसला अपना
***
सौ इल्जाम, वाइज़ तेरे, मुझको कबुल हैं
यकीं मुझको पाक़तर दामन भी हैं तेरा,
मगर फिर भी, झाँक कभी तो गिरेबाँ अपना
***

लौट आई है सर्द शामें फिर से

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लौट आई है सर्द शामें फिर से
के ठिठुरने लगे है ठन्डे रिश्ते
कुछ गर्मी ताप ले हम तुम,
आओ , लिपट कर सो जायें
... अरसों इस ठौर बहें ना,
नव स्वप्नों के कोमल गीत
सुनकर इक दूजे ही के बोल
कुछ देर बहल ले हम तुम
आओ , लिपट कर सो जायें
 ... किस देस मेंह बरसें हैं फिर से,
ये मरुथल तो सुखा ही सुखा
दो आँसू बुला ले आँखों से,
खुद अपना दामन भीगा ले हमतुम,
आओ , लिपट कर सो जायें
 लौट आई है सर्द शामें फिर से
के ठिठुरने लगे है ठन्डे रिश्ते
कुछ गर्मी ताप ले हम तुम,
आओ , लिपट कर सो जायें
 

अंतर्मन