चले जाना

Author: Kapil Sharma / Labels:

चले जाना, जाने से कौन रुका है?
मंजर जरा संभल जाए,
धड़कन कुछ होश पाए,
ये रूह को जो जिद्द है,
तुम्हारे साथ हो लेने की
थोड़ी देर बहल जाए
चले जाना, जाने से कौन रुका है?
मंजर जरा संभल जाए
थोडा रंग पकड़ ले,
ये मौसम, माहताब, हवाएं
कुछ तारें अश्क पोंछ ले,
कुछ मिजाज़ रात का बदल जाए
चले जाना, जाने से कौन रुका है?
मंजर जरा संभल जाए.

कुछ त्रिवेणियाँ

Author: Kapil Sharma / Labels:

शराब हो, तुम हो, रूमानी सा समाँ  हो
तेरी ग़ज़लों की किताब से महफ़िल यूँ जवाँ  हो

मुद्दत हो गयी, "अज्जू", हमें साथ बैठे।।

***

जाने कितने जाम उतारे, उसने भी और मैंने भी
कितने रचे फलक पे चाँद सितारे, उसने भी और मैंने भी

कमाल है, तेरी गैरमौजूदगी , साकी भी और शायर भी
 

***

धड़कन धड़कन ढूंढा है, रेझा रेझा तलाशा
अब बस साथ है तेरा चेहरा धुन्दला सा

उस रोज़ दिल के साथ और बहोत कुछ टुटा था

***

धड़कन धड़कन ढूंढा है, रेझा रेझा तलाशा
अब बस साथ है तेरा चेहरा धुन्दला सा

उस रोज़ दिल के साथ और बहोत कुछ टुटा था

***

अजब नस्लें आबाद हैं, खुदा तेरे जहान में
शेखचिल्ली मस्त हैं, न जाने किस गुमान में

शाख दीवानी, कंपकपाती हैं, इनके नीचे

***

दिल भी भर आएगा, आँख आंसू भी छलकाएगी
बेमौसम, सेहरा पर मेघा अपनी जुल्फें लहराएगी

धुंधली भले हो जाये यादें, पिछा कहाँ छोडती है?

अंतर्मन