इत्ती सी नज़्म

Author: Kapil Sharma / Labels:

इत्ती सी नज़्म
बहोत सताती हैं मुझे
लफ़्ज़ों से लड़ती हैं
ख्यालों को तोड़ती, मरोड़ती है
खुद अधूरी सी रहकर,
सीने में रोती हैं
जब कभी तेरा नाम,
बिन शुमार किये,
इसे मुकम्मल करने की
कोशीश करता हूँ
इत्ती सी नज़्म
बहोत सताती हैं मुझे

मेरे शहर के रास्ते

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मेरे शहर के रास्ते, 
मुझ जैसे ही पगले, दीवाने
मेरे शहर के रास्ते,
मंजिलों की क्या जाने?
मेरे शहर के रास्ते,
परवाने बिन शम्मा के
मेरे शहर के रास्ते,
लौट कर आना न जाने
मेरे शहर के रास्ते,
बेपरवा क़दमों के कायल
मेरे शहर के रास्ते,
मिजाज़ - ए - अजल
मेरे शहर के रास्ते,
सबके हमराह,
मेरे शहर के रास्ते
मेरी तरह ही गुमराह
मेरे शहर के रास्ते,
मुझ जैसे ही तन्हा

क्या क्या, कहना हैं?

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क्या क्या,
कहना हैं,
क्या क्या,
मन में रहे?
इक प्यासा सावन,
इस नयन से,
उस नयन में बहें
इन नैनों ने,
इक दूजे से,
जाने कितने,
भेद छिपाए?
जाने कितने,
झूठ कहें?
लेकिन ये,
प्रेम निगोड़ा,
दोनों के,
मन से ना टले
सर चढ़े,
चैन करे,
पाँव पसर,
दोनों के,
हर क्षण में रहे
क्या क्या,
कहना हैं,
क्या क्या,
मन में रहे?

अंतर्मन