हज़ार अब्र शक के
क्यों उभरे हैं महफिल की आँखों में
बस एक उसका नाम ही
तो लिया था मैंने
क्यों तंज़ हजारो उड़ चले मेरी और
बस प्याला ही तो कसमसा कर
तोडा था मैंने
क्यों बह चले आंसुओ साथ
अरमान सारे मेरे
बस एक ख्वाब को इन
आँखों में रोका था मैंने
ना जाने क्यों
Author: Kapil Sharma / Labels: MEदर्द ठहरता हैं देर तक
Author: Kapil Sharma / Labels: MEदर्द ठहरता हैं देर तक
मगर एक दिन खत्म
हो ही जाता हैं
इसके निशाँ लेकिन
कुछकर जाते नहीं हैं
बेचिराग घर की तरह
पड़े रहते हैं वहीँ के वहीँ
...एक बार एक चिराग जला दो
...एक बार इस रूह को सुकू मिल जाये
...भटकते भटकते थक गया हूँ
कौन पल हैं? कैसा वक्त? लम्हा कौन सा है
Author: Kapil Sharma / Labels: MEकौन पल हैं? कैसा वक्त? लम्हा कौन सा है?
एक शक्स मुझे क्यों लगता खुदा सा हैं?
वो शक्ल मासूम सी
फरिश्तो की जलन
उसकी हर अदा
पुरवाई का झोंका सा हैं
कौन पल हैं? कैसा वक्त? लम्हा कौन सा है?
एक शक्स मुझे क्यों लगता खुदा सा हैं?
उसे ढाला तुने
किस फन से याखुदा मेरे
सपनो में पला हैं या
माँ की दुआ सा हैं
कौन पल हैं? कैसा वक्त? लम्हा कौन सा है?
एक शक्स मुझे क्यों लगता खुदा सा हैं?
जिंदा हूँ मैं
यकीं ख़ुद मुझे
आता नहीं
ता-क़यामत लम्हा क्यूँ ठहरा सा हैं
कौन पल हैं? कैसा वक्त? लम्हा कौन सा है?
एक शक्स मुझे क्यों लगता खुदा सा हैं?
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