हज़ार अब्र शक के
क्यों उभरे हैं महफिल की आँखों में
बस एक उसका नाम ही
तो लिया था मैंने
क्यों तंज़ हजारो उड़ चले मेरी और
बस प्याला ही तो कसमसा कर
तोडा था मैंने
क्यों बह चले आंसुओ साथ
अरमान सारे मेरे
बस एक ख्वाब को इन
आँखों में रोका था मैंने
ना जाने क्यों
Author: Kapil Sharma / Labels: ME
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2 comments:
बहुत खूब । सुन्दर रचना ।
please remove word verification then it wiil be easy to comment. Thanks
गुलमोहर का फूल
ब्लॉग की दुनिया में आपका स्वागत है, आपके लेखन में प्रखरता की आकांक्षी हूँ .......
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