भले लाख जुस्तजू लिए

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भले लाख जुस्तजू लिए मेरी नज़र रहे
दिल तुम्हारा बेअसर था बेअसर रहे
क्या और इन्तहा हो, इश्क की,

इश्क था, इश्क हैं, और इश्क अगर रहे?
कौन दीवाना अब मंजिल की तलब रखे?
रास्ता चलता रहे, तू हमसफ़र रहे

सुना सुना जैसा भी, 
दश्त तो "नुक्ता" अपना है
लाख रंगीनियाँ लिए मुबारक, 
आपको अपना शहर रहे

किस विद मैं पिया को पाऊं

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किस विद मैं पिया को पाऊं 
किस विद भेद उजागर होवे
जो मैं तुझको खोजन जाऊं
मुझसे मेरा आपा खोवे


ज़िन्दगी चलती रही

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ज़िन्दगी चलती रही तेज़ अपनी रफ़्तार से
हम रह गए खुद ही के पिंजरों में गिरफ्तार से

न जाने क्या बेख्याली थी, कैसी कशमकश?
हाथ ज़ख़्मी होते रहे अपने ही हर एक वार से

इश्क के और भी अंजाम मुमकिन रहे हैं हमेशा
तकदीरें बदल जाती है, इकरार से, इनकार से

उस कातिल के हाथ देना, फैसला ए मुकदमा 
मासूम सी रूह  लिए, फना करें, मुझे जो प्यार से

मोहे प्यासों छोड़ गयो

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प्यासी अखियाँ,
प्यासों सावन,
प्यासें मेलें,
प्यासें मधुबन,
प्यासें पगले मन की अनमन,
प्यासें मो संग मोरा साजन,
प्यासी दीप संग पतंग की उलझन,
दीप पतंगा पी गयो री
मोहे प्यासों छोड़ गयो री
कदम्ब तले कान्हो बेदर्दी

मत छेडिये

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मत छेडिये, रहने दीजिये
जो राख सी जमी हैं शोलों पर
ना फूंक भरे, मत हवा दीजिये
इस ज़ेहन का सूनापन
इक गुबार से भर जायेगा
फिर सन्नाटे को तरसते
उम्र सा लम्बा,  लम्हा लग जायेगा
रोग पुराना है, दवाएं हैं बेअसर
रहम करिए, मौत की दुआ दीजिये
मत छेडिये, रहने दीजिये
जो राख सी जमी हैं शोलों पर
ना फूंक भरे, मत हवा दीजिये

रहनुमाओ की शक्ल

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रहनुमाओ की शक्ल लिए यहाँ  पग पग शैतान दिखे 
बस्तियों जब भी तलाशी हमने बस सुने शमशान दिखे 
इन्साफ पसंद होते हैं, मुल्क में मेरे काजी सभी,
जब भी तख्तों से मुजरिम के ऊँचे इन्हें मकान दिखे
अजब लुटेरों की जात आबाद हैं अपने साथ -
होठों पे जुबां फीर जाती गर कहीं कोई इंसान दिखे
वक़्त बदलें, दिन जमुरियत के भी सुहाने आयेंगे
शर्त बस इतनी शेखजी को कुर्सी से पहले ईमान दिखे

मुखौटे

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बड़े बेहतरीन ढंग से,
कभी लफ़्ज़ों में, कभी मुस्कानों में,
कभी अपनी पलकों के किनारों में,
छिपा लेती हो,
दर्द, बेचैनी,पीड़ा चुभन, तुम अमूमन
मगर उस दिन जब तुम कहते कहते कुछ
इक पल को जो सांस लेने रुकी
यूँ लगा तुमने तय कर लिए कई फासले
और आ गयी हो इतने करीब
के सारे चिलमन, सारे परदे
हटाकर अब, कह दोगी
जो बपर्दा था अब तक
उस एक पल में कई सौ दफा मेरी धड़कन,
रुकी चली, बढ़ी औ मद्धम हुयी


मगर अगले ही पल...
मुखौटे, चिलमन और कई सारे चहरे
फिर ओढ़ लिए तुमने और  बस खिलखिलाकर हँस पड़ी


लम्हे सा लम्बा युग

Author: Kapil Sharma / Labels:

लम्हे सा लम्बा युग
कौंध गया क्षण में
आँखों के आगे से
ये अभी कौन गया?    

अंतर्मन