यूँ भी दर्द की दवा हो
कपकपाती लौ, जोरों की हवा हो
सर्द अरमानो को एक मौत मिल ही जाए
जो वादों का सारे फ़िर से बयाँ हो
पनाहगाह मेरी, ख़ुद पनाह मांगती
तुम ही बोलो खुदाया अब मेरा क्या हो
यूँ भी दर्द की दवा हो
कपकपाती लौ, जोरों की हवा हो
यूँ भी दर्द की दवा हो कपकपाती लौ, जोरों की हवा हो
Author: Kapil Sharma / Labels: MEदिन ठहरते हैं देर तक
Author: Kapil Sharma / Labels: MEदिन ठहरते हैं देर तक
थक कर सूरज की छाँव में
उदास से, रूठे हुए
उस उजडे हुए गाँव में
...के शामों ने उन घरों से पनाह उठा ली हैं
बरगद के नीचे अब
कोई जमघट लगता नहीं
यूँ भी तो होता होगा
Author: Kapil Sharma / Labels: MEमानता हूँ वो झूठ बहुत बोलता हैं
कभी कभी सच भी तो कहता होगा
उसकी ज़िन्दगी में
...यूँ भी तो होता होगा
मानता हूँ वो बड़ा दिलफरेब हैं
किसी के लिए तो दिल उसका भी बिलखता होगा
उसकी ज़िन्दगी में
...यूँ भी तो होता होगा
ज़िन्दगी की भागदौड़ ने थका ही दिया होता
किसी दरख्त की छाँव में चैन से सोता होगा
उसकी ज़िन्दगी में
...यूँ भी तो होता होगा
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