दिन ठहरते हैं देर तक
थक कर सूरज की छाँव में
उदास से, रूठे हुए
उस उजडे हुए गाँव में
...के शामों ने उन घरों से पनाह उठा ली हैं
बरगद के नीचे अब
कोई जमघट लगता नहीं
दिन ठहरते हैं देर तक
Author: Kapil Sharma / Labels: ME
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2 comments:
उस उजडे हुए गाँव में
...के शामों ने उन घरों से पनाह उठा ली हैं
बरगद के नीचे अब
कोई जमघट लगता नहीं
again superb
aap to kamal likhte hin kapil ji
dhanywaad kuldeepji
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