वर्खों में क़ैद इस तरह पुराने कुछ अशआर मिले,
बरसों बाद, ज्यूँ, नाराजगी लिए दो यार मिले
चल ढूँढते हैं मिलकर लफ्ज़ नया जुदाई को,
बिछड़ते हुए लबों पे झिझक न इस बार मिले
वादे पर तेरे ऐतबार कर भी ले लेकिन,
इक और ज़िन्दगी का, फिरसे न इंतज़ार मिले
चाँद तलाशते जब भी नज़रों ने आसमान देखा
खुशफेहमियाँ बेचते, बस इश्तेहार मिले
बरसों बाद, ज्यूँ, नाराजगी लिए दो यार मिले
चल ढूँढते हैं मिलकर लफ्ज़ नया जुदाई को,
बिछड़ते हुए लबों पे झिझक न इस बार मिले
वादे पर तेरे ऐतबार कर भी ले लेकिन,
इक और ज़िन्दगी का, फिरसे न इंतज़ार मिले
चाँद तलाशते जब भी नज़रों ने आसमान देखा
खुशफेहमियाँ बेचते, बस इश्तेहार मिले
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