सोचता हूँ अगर मैं दुवाँ माँगता
हाथ अपने उठाकर मैं क्या माँगता
थक गयी जुबां, इस साहिल पे मेरी
अब के उस साहिल से सदां माँगता
मौत माँग लेता मैं खुदाया तुझसे
या इस बेजा ज़िन्दगी की वजा माँगता
जो बेरास्ता हो गया हैं सफ़र
बाकदम नयी ज़मी, आसमा माँगता
तू जो मशगुल इस जहाँ की फ़िक्र में
अपने लिए इक अलग खुदा माँगता
सोचता हूँ अगर मैं दुवाँ माँगता
हाथ अपने उठाकर मैं क्या माँगता
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