रहनुमाओ की शक्ल लिए यहाँ पग पग शैतान दिखे
बस्तियों जब भी तलाशी हमने बस सुने शमशान दिखे
इन्साफ पसंद होते हैं, मुल्क में मेरे काजी सभी,
जब भी तख्तों से मुजरिम के ऊँचे इन्हें मकान दिखे
अजब लुटेरों की जात आबाद हैं अपने साथ -
होठों पे जुबां फीर जाती गर कहीं कोई इंसान दिखे
वक़्त बदलें, दिन जमुरियत के भी सुहाने आयेंगे
शर्त बस इतनी शेखजी को कुर्सी से पहले ईमान दिखे
बस्तियों जब भी तलाशी हमने बस सुने शमशान दिखे
इन्साफ पसंद होते हैं, मुल्क में मेरे काजी सभी,
जब भी तख्तों से मुजरिम के ऊँचे इन्हें मकान दिखे
अजब लुटेरों की जात आबाद हैं अपने साथ -
होठों पे जुबां फीर जाती गर कहीं कोई इंसान दिखे
वक़्त बदलें, दिन जमुरियत के भी सुहाने आयेंगे
शर्त बस इतनी शेखजी को कुर्सी से पहले ईमान दिखे
8 comments:
Kamaal.. ekdum kamaal.. :)
apke blog par follow karne ka link nahi dhoondh pa raha hun.. zara raah dikhaaiye.. :)
Shukriyaa Aditya Bhai
Aapke sujhav par Follower Widget Enable kar diya hai
वाह.आज के समाज की सही तस्वीर खींची है.
pandeyji, aapne koshish ko saraha iske liye aabhari hun
बहुत अच्छी रचना है
बधाई स्वीकारे
Shashiji, Behad shukriya
rahnumaon ki shakal liye yahan pag pag shaitan dikhe
SACMUCH NUKTAAJI, AAJ ENSAN DOODHNA BADA MUSHKIL HAI-SAHI BAYAN KIYA HAI AAPNE.
Dr. Saab, Bahot bahot dhanywaad
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