बड़े बेहतरीन ढंग से,
कभी लफ़्ज़ों में, कभी मुस्कानों में,
कभी अपनी पलकों के किनारों में,
छिपा लेती हो,
दर्द, बेचैनी,पीड़ा चुभन, तुम अमूमन
मगर उस दिन जब तुम कहते कहते कुछ
इक पल को जो सांस लेने रुकी
यूँ लगा तुमने तय कर लिए कई फासले
और आ गयी हो इतने करीब
के सारे चिलमन, सारे परदे
हटाकर अब, कह दोगी
जो बपर्दा था अब तक
उस एक पल में कई सौ दफा मेरी धड़कन,
रुकी चली, बढ़ी औ मद्धम हुयी
मगर अगले ही पल...
मुखौटे, चिलमन और कई सारे चहरे
फिर ओढ़ लिए तुमने और बस खिलखिलाकर हँस पड़ी
कभी लफ़्ज़ों में, कभी मुस्कानों में,
कभी अपनी पलकों के किनारों में,
छिपा लेती हो,
दर्द, बेचैनी,पीड़ा चुभन, तुम अमूमन
मगर उस दिन जब तुम कहते कहते कुछ
इक पल को जो सांस लेने रुकी
यूँ लगा तुमने तय कर लिए कई फासले
और आ गयी हो इतने करीब
के सारे चिलमन, सारे परदे
हटाकर अब, कह दोगी
जो बपर्दा था अब तक
उस एक पल में कई सौ दफा मेरी धड़कन,
रुकी चली, बढ़ी औ मद्धम हुयी
मगर अगले ही पल...
मुखौटे, चिलमन और कई सारे चहरे
फिर ओढ़ लिए तुमने और बस खिलखिलाकर हँस पड़ी
11 comments:
Bakhubi bayaan kiya hai ehsaas ko sir..
bahut sundar panktiyaan..
Ye mukhauta jab koi apna laga leta hai to dard bahut deta hai..
par kabhi kabhi khud ko bhi yehi mukhauta lagaana pad jaata hai taaki dard se bach sakein..
kabhi waqt mile to mere blog par bhi aaiyega..
palchhin-aditya.blogspot.com
Aaditya bahut sahi kaha aapne
aur pasandgi ke liye bahot bahot shukriya
Wow!
Thank you :)
प्यार में पीड़ा तो मिलती ही है.
वफ़ा क्या है जमाने को बतलाऊ क्या?
परवाने को जला कर शमा जल रही है.
Sirji bahot sundar
is se badhkar sarhana kya hogi
This was beautifully put...bahut zyaada depth hai aapki lekhni mein. Maine kahaa tha na, main baar baar lautungi aapka likha padhne ke liye.
Bahot Bahot shukriya Meeraji,
Sadaiv koshish rahegi aapko yaha accha kuch padhne miley.
Sneh Banaye Rakhe :)
मुखौटे ओढकर जीना भी एक कला होती है
हर हंसी में छिपी कोई सदा होती है
लोगों से नहीं ख़ुद को ख़ुद से छुपाना पढ़ता है
ये ज़िंदगी,ज़िंदगी नहीं,मौत की सज़ा होती है
Wahh Shaizi...Bahot Khoob
Thnx a lot
Post a Comment