प्रेम में, सुधबुध बिसराना

Author: Kapil Sharma / Labels:

प्रेम में, सुधबुध बिसराना
तुम क्या जानो, ओ निर्मोही?
दर्द, बिछहो को हिय में बसाना
तुम क्या जानो, ओ निर्मोही?
आतुर नैनो की भाषा को,
अनमिट प्रेम की परिभाषा को
बिन बोले ही पढ़ पाना
तुम क्या जानो, ओ निर्मोही?
इस एकांक में तुम क्यों आओ?
तुम अपनों संग जी भर मुस्काओ,
बंद कमरों में आंसू बहाना,
तुम क्या जानो, ओ निर्मोही?
क्यों रात भर दिया अकुलाये,
क्यों  पतंगा फिर फिर आये?
क्या है आग, क्या जल जाना,
तुम क्या जानो, ओ निर्मोही?

4 comments:

induravisinghj said...

beautiful,aisa laga jaise ki gopiyaan kanha se kahe rahi hai ki 'o nirmohi tu kya jaane'

Kapil Sharma said...

:) glasd u liked it Induji :) it means a lot when it comes from a poetess like u

पुरुषोत्तम पाण्डेय said...

इकतरफा प्यार पानी के जहाज के पोर्ट पर हवाई जहाज की प्रतीक्षा करने जैसा अनुभव देता है.फिर निर्मोही की भी कुछ मजबूरियाँ हो सकती है.आखिर हम सब सांसारिक जीव ही तो हैं. अच्छी रचना है.

Kapil Sharma said...

dhanywaad sirji :)

अंतर्मन