अब शर्म करो "नुक्ता"

Author: Kapil Sharma / Labels:

लफ़्ज़ों की मासूमियत ने,
अब के तेज कर आँखों को,
कहा, "अब शर्म करो "नुक्ता"
कब तलक अपनी चालाकियों के
विष बाण हम में बुझाओगे?
कब तलक अपने सिने के अजाब,
नकाबों में छिपाओगे?
अपनी सोच, अपने ख्यालों पर,
सोने के मुलामें चढ़वाओगे?"
लफ़्ज़ों की मासूमियत ने,
अब के तेज कर आँखों को,
कहा, "अब शर्म करो "नुक्ता"!!!"

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