इक तो तेरी नरम हथेली,
और उस पे ये हिना नायाब
क्यों न महके जेहनो दिल?
क्यों न महके ज़मी आसमान?
इक तो बयान वस्ल का,
ऊपर से किस्सा ए अजाब,
कैसे न थरथराये हाथ?
कैसे न लडखडाये ज़ुबान?
इक तो तेरे लबों के प्याले,
और तेरी रूह में डूबी शराब
क्या होगा अंजाम ए रिंद?
क्या होगा अंजाम ए जहान?
और उस पे ये हिना नायाब
क्यों न महके जेहनो दिल?
क्यों न महके ज़मी आसमान?
इक तो बयान वस्ल का,
ऊपर से किस्सा ए अजाब,
कैसे न थरथराये हाथ?
कैसे न लडखडाये ज़ुबान?
इक तो तेरे लबों के प्याले,
और तेरी रूह में डूबी शराब
क्या होगा अंजाम ए रिंद?
क्या होगा अंजाम ए जहान?
2 comments:
Very nice!!
thnx :)
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