तेरी रूह में डूबी शराब

Author: Kapil Sharma / Labels:

इक तो तेरी नरम हथेली,
और उस पे ये हिना नायाब
क्यों न महके जेहनो दिल?
क्यों न महके ज़मी आसमान?

इक तो बयान वस्ल का,
ऊपर से किस्सा ए अजाब,
कैसे न थरथराये हाथ?
कैसे न लडखडाये ज़ुबान?

इक तो तेरे लबों के प्याले,
और तेरी रूह में डूबी शराब
क्या होगा अंजाम ए रिंद?
क्या होगा अंजाम ए जहान? 

अंतर्मन