भूले से कभी
तू भी मुझसे,
इज़हार ऐ मोहब्बत कर,
हर्ज़ा क्या है?
गर खौफ हैं तुझको भी,
तन्जों से तानों से,
तो तू बता तेरा
ओहदा क्या है?
छिपाया अब तक,
इस रिश्ते में,
तुने, मैंने, जाने क्या क्या?
वक़्त ऐ इम्तेहा पर भी
हम दोनों में, जाने ये,
पर्दा क्या है?
दर्द, दवा औ दुआ
में अब फर्क नहीं
करता हैं वो,
बेखुदी की हदों से बढ़ना,
यही नहीं तो,
"नुक्ता", क्या है?
तू भी मुझसे,
इज़हार ऐ मोहब्बत कर,
हर्ज़ा क्या है?
गर खौफ हैं तुझको भी,
तन्जों से तानों से,
तो तू बता तेरा
ओहदा क्या है?
छिपाया अब तक,
इस रिश्ते में,
तुने, मैंने, जाने क्या क्या?
वक़्त ऐ इम्तेहा पर भी
हम दोनों में, जाने ये,
पर्दा क्या है?
दर्द, दवा औ दुआ
में अब फर्क नहीं
करता हैं वो,
बेखुदी की हदों से बढ़ना,
यही नहीं तो,
"नुक्ता", क्या है?
2 comments:
जमाने ने उनको बख्शा नहीं है
उल्फत का जिनको शऊर आ गया हो.
उल्फत क्या है जमाने को समझाऊ क्या?
इक बदन में दो-दो रूह आ गयी हों.
Sirji, aapke vicharon se sehmat hun
rachna sarahane ke liye shukriya
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