इश्कां तेरी महफ़िल में

Author: Kapil Sharma / Labels:

इश्कां तेरी महफ़िल में वो,
यूँ भी तो नाकाम हुए
एक तेरा बस दिल रखने को,
कितनी दफा बदनाम हुए

बेपार अजब चला पड़ा है,
जाहद तेरी दुनिया में,
जिस्मों के सौदों के भी,
अब तो रूहों जैसे दाम हुए

झुकती पलकें, चोर निगाहाएं,
रोज़ यहीं पर मिलती थी
बरगद की इस छाओं में,
सदियों, माशूकों के सलाम हुए

रिंदगी से हमने यारी,
इस हद तक निबा ली है
इसको पीते रहे कभी,
कभी हम, रिंदी के जाम हुए

वो भी इस के बरस सुना है,
नया मकान बनवाता है,
शीशे चढ़ते, खिडकियों पे, "नुक्ता"
इन हाथो पत्थर अब हराम हुए
_______________________________________________________________
बेपार - व्यापार, Business; रिंदगी - मयकशी, Addiction to alcohol

कुछ लफ्ज़ उठा रखे हैं

Author: Kapil Sharma / Labels:

कुछ अश्क संभाले है
हमने अपने कल के लिए
कुछ लफ्ज़ उठा रखे हैं
आने वाले पल के लिए

यूँ तो सावन सारे
बरस के बरसों बीत गए
बंजर ये जमीं, तकती है राह,
जाने किस बादल के लिए

जहां सँवारने का शौक,
अपना भी नातमाम रहा
हज़ार मसले खड़े हैं यहाँ
निज़ाम के हरेक हल के लिए

कितने घर उजड़े अब तक
जाने कितने खंडर हुए?
क्या कीमत मुनासिफ है,
शेख तेरे, महल के लिए?

शहर के बाशिंदे सारे,
मैं बुला लाया हूँ यहाँ,
नज़र आवाम की टिकी है,
रहबर तेरी, पहल के लिए
  
मंदिर, मस्जिद, मैखाने
सब दर खोल बैठे हैं
यूँ भी दुकानें सजती है
"नुक्ता", तुझ पागल के लिए

रावन

Author: Kapil Sharma / Labels:

कच्ची थी बहुत मिट्टी,
कम उम्र हाथ थे,
अनगढ़ से, खेल में
इक बुत वो बनाते थे
रंग इश्क का चढ़ाते
खुशबु से सजाते थे

उम्र हाथों की थी बढ़ती
बुत और सँवरता रहता
नूर इल्म का आया,
तजुर्बे में हुयी बरकत
फनकारी निखर आयी
जग में बड़ी थी हैरत

खिताब ओ तन्जों से
"शेखों", रिश्ता जो निभाना था
जब नाम बक्शा तुमने बुत को,
कुछ और ही बहाना था

सच उसकी जुबान के,
अब तो काँटों से थे चुबते
ज़िल्लत भरे तंज क्यों
लब से तुम्हारे थे चलते

वहिशियत से कोई कर्जा
क्या तुमको था चुकाना?
फ़रमाँ दिया,
"इस बुत के दिल में,
होगा "हाथों" से आग लगाना
ये मगरूर हैं, बेरहम हैं,
इन्साफ आज बस हम है,
बदी के पुतले को मिटाना होगा,
हमें जीना है, इसे जलना होगा
आखरी जरिया है,
खुदाई को यूँही होगा अब बचाना
इस बुत के दिल में,
होगा "हाथों" से आग लगाना"

शेखों के खौफ से,
वो हाथ काँपते थे,
लबों पे ले मुस्कराहट,
जालिम अपना रसूख नापते थे

खौफ ने हाथों के सब अरमान मिटा डाले
दबी सिसकियों से
हाथों ने, आग में, बुत को कर दिया हवाले

न जाने किस करम से
मौजजा सा हुआ
ख़ाक हुए सब,
इल्म, फन, तजुर्बा
पर मेरा रावन नहीं जला

तलाश इक

Author: Kapil Sharma / Labels:

तलाश इक,
इक प्यास लिए,
दर टटोले कितने,
टूटती सांस लिए?

 

क्या क्या बनना था

Author: Kapil Sharma / Labels:

आँधी से मिले, 
तूफां से चल दिए
बेज़ार हम तन्हा
इक आह भरकर रह गए
साथी, हमराह, 
रहभर, मंजिल
क्या क्या बनना था,
राह-ए-हयात में
हम क्या बनकर रह गए
   

अंधेरो ने बज़्म में

Author: Kapil Sharma / Labels:

अंधेरो ने बज़्म में,
शिरकत शुरू की है
चल शायर,
मजलिस उठ जाने को 
अब वक़्त ज्यादा नहीं
तन्हाइयों से चाँद की बातें,
रोक ही दो जरा,
इनको भी रूठ जाने को
अब वक़्त ज्यादा नहीं
तक्क्लुस, खिताब
और तानो की हवस
बाकी ना रहे,
लफ़्ज़ों का साथ छुट जाने को
अब वक़्त ज्यादा नहीं
 

तेरे लबों का छु लेना

Author: Kapil Sharma / Labels:

तेरे लबों का छु लेना
नसीब अगर होता
 मेरे लफ़्ज़ों में
दुआओं सा असर होता
ये ज़िन्दगी भी 
रूमानी हो ही जाती
एक दिन जो मौत की तरह
जीने का भी मुकर्रर होता
वादा झूठा ही सही 
कर तो जाते 
नादान इस दिल को
एक क़यामत तक
और सबर होता
 
  

अंतर्मन