इश्कां तेरी महफ़िल में

Author: Kapil Sharma / Labels:

इश्कां तेरी महफ़िल में वो,
यूँ भी तो नाकाम हुए
एक तेरा बस दिल रखने को,
कितनी दफा बदनाम हुए

बेपार अजब चला पड़ा है,
जाहद तेरी दुनिया में,
जिस्मों के सौदों के भी,
अब तो रूहों जैसे दाम हुए

झुकती पलकें, चोर निगाहाएं,
रोज़ यहीं पर मिलती थी
बरगद की इस छाओं में,
सदियों, माशूकों के सलाम हुए

रिंदगी से हमने यारी,
इस हद तक निबा ली है
इसको पीते रहे कभी,
कभी हम, रिंदी के जाम हुए

वो भी इस के बरस सुना है,
नया मकान बनवाता है,
शीशे चढ़ते, खिडकियों पे, "नुक्ता"
इन हाथो पत्थर अब हराम हुए
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बेपार - व्यापार, Business; रिंदगी - मयकशी, Addiction to alcohol

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