जब तक तुम साथ हो

Author: Kapil Sharma / Labels:

नब्ज़ थामे रखो थोडी देर और,
देखो एक पल तो बाकी हैं अभी
दौडेगा थोडी दूर अभी ये,
भूल जायेगा दर्द सारे, रंज सारे
मचलेगा नये अरमानो संग अभी
नये ख्वाबो के पर लगाकर,
उड़ने की कोशीश भी करेगा

नादान हैं, मासूम हैं बड़ा,
...जी लेने दो इसे
...जब तक तुम साथ हो

सच्चे...झूठे

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कई सच हैं उसके
एक दुसरे से जुदा
क्या सारे सच हैं
क्या सारे सच, सच हैं
या कुछ सच्चे
और कुछ झूठे
या सारे सच झूठे हैं
...उसकी तो वो ही जाने

यूँही खामोश से

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यूँही खामोश से,
साहिल पर वो दोनों,
ख्वाब बुनते एक दूजे के,
एक दूजे के लिए,
उम्मीद में के कभी तो,
...ये समंदर सुख जायेगा

तेरा आँचल

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बहुत रोया हैं सूरज दिन भर
बहुत लम्बी थी खामोश शामें
उदास उदास थी रात आज भी
चाँद पे ताला लगाया था किसने?
क्यों बेवजह नींदें उचट रही हैं?
क्यों चुबता हैं बिस्तर मुझे?
क्या बात हैं ख्व्वाब सारे
बिलख बिलख कर उठते हैं?
क्यों लापनाह ये नज़रें मेरी
...तेरा ही आँचल तलाशती हैं?

ना जाने क्यों

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हज़ार अब्र शक के
क्यों उभरे हैं महफिल की आँखों में
बस एक उसका नाम ही
तो लिया था मैंने
क्यों तंज़ हजारो उड़ चले मेरी और
बस प्याला ही तो कसमसा कर
तोडा था मैंने
क्यों बह चले आंसुओ साथ
अरमान सारे मेरे
बस एक ख्वाब को इन
आँखों में रोका था मैंने

दर्द ठहरता हैं देर तक

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दर्द ठहरता हैं देर तक
मगर एक दिन खत्म
हो ही जाता हैं
इसके  निशाँ लेकिन
कुछकर जाते नहीं हैं
बेचिराग घर की तरह
पड़े रहते हैं वहीँ के वहीँ
...एक बार एक चिराग जला दो
...एक बार इस रूह को सुकू मिल जाये
...भटकते भटकते थक गया हूँ

कौन पल हैं? कैसा वक्त? लम्हा कौन सा है

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कौन पल हैं? कैसा वक्त? लम्हा कौन सा है?
एक शक्स मुझे क्यों लगता खुदा सा हैं?

वो शक्ल मासूम सी

फरिश्तो की जलन

उसकी हर अदा

पुरवाई का झोंका सा हैं

कौन पल हैं? कैसा वक्त? लम्हा कौन सा है?
एक शक्स मुझे क्यों लगता खुदा सा हैं?

उसे ढाला तुने

किस फन से याखुदा मेरे

सपनो में पला हैं या

माँ की दुआ सा हैं

कौन पल हैं? कैसा वक्त? लम्हा कौन सा है?
एक शक्स मुझे क्यों लगता खुदा सा हैं?

जिंदा हूँ मैं

यकीं ख़ुद मुझे

आता नहीं

ता-क़यामत लम्हा क्यूँ ठहरा सा हैं

कौन पल हैं? कैसा वक्त? लम्हा कौन सा है?
एक शक्स मुझे क्यों लगता खुदा सा हैं?

अंतर्मन