टूटे टूटे ख़्वाबों में कुछ प्यार सा रहता हैं

Author: Kapil Sharma / Labels:

नींद से अब अक्सर ही मनुहार सा रहता है
टूटे टूटे ख़्वाबों में कुछ प्यार सा रहता हैं

कब से क़ैद है सीने में एक दिवाना सा लफ्ज़
लबों को छु लेने को बेकरार सा रहता हैं

जेहनो दिल ने उम्मीद  छोड़ दी, बरसो हुए
ना जाने रूह में कैसा इंतज़ार सा रहता है

"उससे" सुलह  की तरकीबें सब नाकाम ही रही
मेरा है औ' मुझसे लड़ने तैयार सा रहता है

सवाले वस्ल भी पूछ लेगा "नुक्ता" अगर
उसकी जुबान पे  इकरार सा रहता हैं

9 comments:

Sash said...

"ना जाने रूह में कैसा इंतज़ार सा रहता है"
बहुत खूब!!

Kapil Sharma said...

shukriya

induravisinghj said...

bahut khoob,zubaan pe ikrar sa rahta hai...

Kapil Sharma said...

Thanks :)

पुरुषोत्तम पाण्डेय said...

सुबह होती है तो शाम ढूढता हूँ,
शाम आती है तो रात ढूढता हूँ,
रात आ जाये तो नींद ढूढता हूँ,
नींद आजाये तो ख्वाब ढूँढता हू,
ख्वाब आ जाये तो दिलबर को ढूँढता हूँ.
ये ढूँढने का रफत जिंदगानी बन गयी है तनहा.

तुम भी बड़े खुश किस्मत नुक्ता
तुम्हें भी किसी का इन्तजार रहता है.

Kapil Sharma said...

ahha sirji

BEHAD SHUKRIYAA

शैज़ी said...

Absolutely w'ful...
गोद में उसकी समा जाए आख़िरी हिचकी मेरी
मुझे मेरी ज़िंदगी का इंतज़ार रहता है...

शैज़ी said...

Absolutely w'ful...
गोद में उसकी समा जाए आख़िरी हिचकी मेरी
मुझे मेरी ज़िंदगी का इंतज़ार सा रहता है...

Kapil Sharma said...

Shukriya Shaizi

अंतर्मन