ये लम्हा

Author: Kapil Sharma / Labels:

साहील के रेत पर
निशाँ  पैरों के तलाशने,
ये लम्हा बेवक्त घर से निकला था.
कुछ रूठा सा कुछ टुटा सा,
फिर बिखरने या संभलने,
ये लम्हा बेवक्त घर से निकला था.

उस कमरे की एक अलमारी,
यही कही वह छिपती थी,
नादान बेचारा, उसे खोजने
ये लम्हा बेवक्त घर से निकला था.

8 comments:

@ngel ~ said...

ye lamha bewaqt ghar se nikla tha...
Awesome :)

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूब ...

Kapil Sharma said...

thanks @ngel!!!
शुक्रिया गीतजी!!!

Yashwant R. B. Mathur said...

आज 15/05/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुंदर.....

बधाई.

अनु

सुनीता शानू said...

बहुत ही सुन्दर अहसास। वाह!

विभूति" said...

वाह! बहुत खुबसूरत एहसास पिरोये है अपने......

Kapil Sharma said...

Yahswant ji, Expression, Sunitaji and Sushme ji
Bahot bahot dhanywaad

अंतर्मन