इक इक पल
कई सवाल,
सदियाँ गुजरती है कैसे लम्हों में क़ैद?
आती जाती हर सांस क्यों बेकल?
इक इक पल
कई सवाल,
बेसबब से वजूद में, बेवजह सी ज़िन्दगी में
माइने क्यों सिर्फ इक शकल?
इक इक पल
कई सवाल,
नैना जैसे राह बिछे हो, हर आहट पे
बनते, बिखरते हैं, उम्मीदों के क्यों महल?
इक इक पल
कई सवाल,
दर्द ओ चैन में दिल में लड़ते हैं इस कदर
क्या हो हासिल, हैरान क्यों अकाल
इक इक पल
कई सवाल इक तेरे इंतेज़ार में .
आज फिर नकाब से
Author: Kapil Sharma / Labels: MEइक और चेहरा उतर गया आज फिर नकाब से
क्या, क्या उम्मीद लगाये बैठे थे यार हम आपसे
कैसे कैसे इम्तहान लेता रहा हैं वक़्त?
अदावत निभाता रहा न जाने किस हिसाब से
इक और चेहरा उतर गया आज फिर नकाब से
कितने हसीं पल थे वोह सारे, कितनी प्यारी बातें थी
अब लगाता हैं लौटें हैं, बचकर हम तो एक अजाब से
इक और चेहरा उतर गया आज फिर नकाब से
हकीक़त से बेखबर, बेपरवाह ही रहे, नुक्ता
ज़िन्दगी बसर दी साड़ी, नाहासिल से ख्व्वाब से
इक और चेहरा उतर गया आज फिर नकाब से
अब न पूछो दिल का आलम, इसकी ख़ामोशी का राज़
सारे सवाल गूंगे हो गए, उनके इक जवाब से
इक और चेहरा उतर गया आज फिर नकाब से
रौशन होगा सारा मंजर, रौशन रौशन कायनात,
जल जाने की शर्त लगा बैठा हैं, नुक्ता, आफताब से
सच की मियादें
Author: Kapil Sharma / Labels: MEसच की मियादें कितनी कम थी
जो तेरे लिए मैं ले आता ?
कड़वे, चुबते, जलते सच से
कैसे तुझको मना लाता ?
कितने गिरेबाँ में चाक थे मेरे
कितने तू सीती, कितने सिलवाता ?
-अधूरी रचना
मत पूछो क्या हैं?
Author: Kapil Sharma / Labels: MEबड़े खूबसूरत वो घरोंदे बनाता
बड़े मुहतात से उनको सजाता
हर एक जोड़ पे कितने ख्वाब बसाता
हसरतो के रंग शौक से लगाता
फनकार था यकीनन वो बेहतर, बेहतर
हर नक्श में कैसे जोहर दिखाता
बड़ी दिलकश होती तखलीक उसकी
कई गुल अश्कों के उसपे खिलाता
...वो "ताबुतसाज़"... हैं और रहेगा
आखरी ज़रया-ए-सफर वही तो बनाता