सच्चाई जो गैर बर्दाश्त,

Author: Kapil Sharma / Labels:

सच्चाई जो गैर बर्दाश्त,
फिर सच मुझसे मांगे क्यों?
वक़्त से जीत नहीं होती गर जो
क्यों लड़े, इस संग भागे क्यों?

कदम जो ठिठक थे,
उस मोड़ तुम्हारे
रिश्ते अपाहिज हो गए थे
कोई साथ चले अपने भी,
ये उम्मीद हो आगे क्यों?

जो कहते थे, तुम मैं, मैं तुम
अब वो  बचकर चलते हैं
आँखें फेर यूँ महफ़िल बैठे
मैं कौन, तू मेरा कुछ लागे क्यों? 

3 comments:

मनोज कुमार said...

संवेदनशील रचना। बधाई।

Ajit Pandey said...

Ultimate, literally wonderful. Keep it up.

Kapil Sharma said...

thnx both of u

अंतर्मन