ना कुफ्र का डर, ना अरमां सबाब का
इक उम्र इंतज़ार की, इक लम्हा आदाब का
बातें सारी नज़रों से, चुप चुप हैं जुबां,
पूछे कोई क्या पूछे, सवाल उनके जवाब का?
ना कुफ्र का डर, ना अरमां सबाब का
आँखें डरी डरी रही हैं सारा दिन,
बहुत देर रहा असर, कल रात के ख्वाब का
ना कुफ्र का डर, ना अरमां सबाब का
किसे करू शिकायत तेरी, मेरा अपना हैं यहाँ कौन?
साकी तेरा, मैकदा तेरा, तेरा प्याला शराब का
ना कुफ्र का डर, ना अरमां सबाब का
ना कुफ्र का डर, ना अरमां सबाब का
Author: Kapil Sharma / Labels: ME
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7 comments:
bahut hi achhi hai.. urdi ke sabdon se to kavita mein jaan hi aa jaati hai :) aapki yahi khoobi hai!
dhanyawaad ji :)
very nice poems
ना कुफ्र का डर, ना अरमां सबाब का
इक उम्र इंतज़ार की, इक लम्हा आदाब का..............nice
ग़ज़ल क़ाबिले-तारीफ़ है।
@SM, Sumanji and ManojJi
Bahut bahut dhanyawaad aap sabka...yunhi sneh banaye rakkhe
Beauty.... tasavvur ke daghe me lafzo ke bunayi ki misal rakhi hai.
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