बस सोच भर लेने ...

Author: Kapil Sharma / Labels:

बस सोच भर लेने से रिश्ते टूटते क्यों नहीं?
हाथ छुट गए, दिल छुटते क्यों नहीं?
ख़्वाबों में क्यों छाए रहते वो साए,
जिनको भूलने में बरसो लगाये?
क्यों काई से जमे हैं अरमान आखों पर,
ये भांप बन पलकों से उठते क्यों नहीं?
बस सोच भर लेने से रिश्ते टूटते क्यों नहीं?
हाथ छुट गए, दिल छुटते क्यों नहीं?



क्या सब इन्हें यूँही संजोते हैं,
इक चोट पे हँसते हैं, इक चोट पे रोते हैं?
घटती हैं ज़िन्दगी, लम्हा दर लम्हा,
ये घाव जिगर के घटते क्यों नहीं?
बस सोच भर लेने से रिश्ते टूटते क्यों नहीं?
हाथ छुट गए, दिल छुटते क्यों नहीं?



क्यों हर आती जाती सांस पे जीते औ' मरते हैं
क्यों आँखों की चादर पे,
ख़्वाबों की सलवट से भी डरते हैं?
क्यों पतझड़ में,
दरख्त से पत्ते इक इक कर झड़ते हैं?
बेमुराद ये पेड़, जड़ से कटते क्यों नहीं?
बस सोच भर लेने से रिश्ते टूटते क्यों नहीं?
हाथ छुट गए, दिल छुटते क्यों नहीं?



अँधेरे, उदास चेहरे को ढक जाते हैं,
उदास मन को मगर ये,
कहाँ घेर पाते हैं?
इस खिड़की से कभी रौशन सूरज भी झाँक ले,
मेरे कमरे से ये सर्द पेहरे  हटते  क्यों नहीं?
बस सोच भर लेने से रिश्ते टूटते क्यों नहीं?
हाथ छुट गए, दिल छुटते क्यों नहीं?

2 comments:

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

waah bahut sunadr...stabdh hoon main..aap blog aggregators ke saath apne blog ko joden aur baki logo ko bhi aapka likha padhne ka mauka den..

aap kamaal ke lekak.lekhika hain...

Kapil Sharma said...

thnx bro!!!!!

अंतर्मन