कुछ दिन हुए हम अपने आपसे रूठे है
मायूस से एक कमरे में तन्हा से बैठे है
एक रात की बात को सिरहाने लगा के
बेमन से लेटे रहते हैं
एक रात की बात को धड़कन बना के
खुद ही सुनते रहते हैं
कुछ दिन हुए हम अपने आपसे रूठे है
मायूस से एक कमरे में तन्हा से बैठे है
उस रात वो हमसे ये कहकर चले थे
नुक्ता तुम झूठे हो
कुछ दिल में रखते हो, कुछ और ही अपनी
जुबां से कहते हो
कुछ दिन हुए हम अपने आपसे रूठे है
मायूस से एक कमरे में तन्हा से बैठे है
यूँ सोच में तबसे दिल हैं और मैं हूँ
क्या सचमुच में नुक्ता मैं तुझसा बुरा हूँ?
क्या सचमच ये दुनिया तुझसे भली हैं?
क्या तुझे छोडके किसीको तेरी कमी खली हैं?
क्यों नादान ये बेसबब की बातें,
छीने सुकून दिन का और पुरसुकून रातें?
क्या जवाबो में कोई चैन मिलेगा,
क्या खोया है तेरा जो वापिस मिलेगा?
कुछ दिन हुए हम अपने आपसे रूठे है
मायूस से एक कमरे में तन्हा से बैठे है
2 comments:
beautiful....pure and sacred thoughts...likhte rahiye nuktaa aap sabse achhe hain..likhte rahiye
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