तेरा आँचल

Author: Kapil Sharma / Labels:

बहुत रोया हैं सूरज दिन भर
बहुत लम्बी थी खामोश शामें
उदास उदास थी रात आज भी
चाँद पे ताला लगाया था किसने?
क्यों बेवजह नींदें उचट रही हैं?
क्यों चुबता हैं बिस्तर मुझे?
क्या बात हैं ख्व्वाब सारे
बिलख बिलख कर उठते हैं?
क्यों लापनाह ये नज़रें मेरी
...तेरा ही आँचल तलाशती हैं?

2 comments:

Anonymous said...
This comment has been removed by the author.
Ajit Pandey said...

Wonderful lines, so realistic thought...

अंतर्मन