ये तल्खी ज़ुबान की,
कड़वाहट भरा सा ज़ेहन
बे तबस्सुम लब,
ये अदावत का पैरहन
बस इसलिए कि कोई
अपना करीब नही,
किसी की अमानत है,
अपना नसीब नही?
क्यों खो रहे हो,
वाइजों के रस्मो रिवाज़ में
क्यों खेल रहे हो
किसी और के अंदाज़ में?
वो इश्क़ क्या इश्क़ नही,
जो खो कर पाया जाता हैं?
क्या भूले हो वो लुत्फ जो
अश्कों संग बहाया जाता हैं?
जो माशूक को देनी थी,
ये नामुराद सौगातें?
क्योकर नुक्ता अब तलक,
तुम अपनी फकीरी पर इतराते?
क्या हुआ जो सुबहो शाम,
अपनी तकदीर में उनका दीद नही?
इतना छोटा सोचोगे,
ये तुमसे तो उम्मीद नही
उसके तस्सवुर से भर लो
रूह, दिल औ आसमान
छोड़ो तल्खी, कड़वाहट
लब पे लौटाओ मुस्कान
देखो ये हर खूबसूरत सहर
उसी परिवश का है एहसान,
शुक्रिया ए महज़बीं
शुक्रिया ए राहत ए जान!
कड़वाहट भरा सा ज़ेहन
बे तबस्सुम लब,
ये अदावत का पैरहन
बस इसलिए कि कोई
अपना करीब नही,
किसी की अमानत है,
अपना नसीब नही?
क्यों खो रहे हो,
वाइजों के रस्मो रिवाज़ में
क्यों खेल रहे हो
किसी और के अंदाज़ में?
वो इश्क़ क्या इश्क़ नही,
जो खो कर पाया जाता हैं?
क्या भूले हो वो लुत्फ जो
अश्कों संग बहाया जाता हैं?
जो माशूक को देनी थी,
ये नामुराद सौगातें?
क्योकर नुक्ता अब तलक,
तुम अपनी फकीरी पर इतराते?
क्या हुआ जो सुबहो शाम,
अपनी तकदीर में उनका दीद नही?
इतना छोटा सोचोगे,
ये तुमसे तो उम्मीद नही
उसके तस्सवुर से भर लो
रूह, दिल औ आसमान
छोड़ो तल्खी, कड़वाहट
लब पे लौटाओ मुस्कान
देखो ये हर खूबसूरत सहर
उसी परिवश का है एहसान,
शुक्रिया ए महज़बीं
शुक्रिया ए राहत ए जान!
2 comments:
Wo shama kya bhukhe jise raushan khuda kare ;)
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