सखी

Author: Kapil Sharma /

अर्थहीन मुझे, वो ज्ञान रण का
क्या गिरधर कहे, क्या पार्थ, सखी
तेरे बिन इस व्याकुल मन की,
कौन सुनेगा,  पीड़ा आर्त, सखी
प्रत्येक शब्द से तेरे,
रिसकर आते अमृतजल ने,
कितनी बार बचाई है रूह मेरी
फिर से ये अंधेरे मुझे गर्त करे है
थाम हाथ मेरा,
मुझे बाहर निकाल सखी
गरल लगता है ये यथार्थ सखी
तेरे बिन इस व्याकुल मन की,
कौन सुनेगा,  पीड़ा आर्त, सखी

तुम पूछती हो,
क्या अंत समय तक,
कभी साथ निभा हम पाएंगे?
लाख करे प्रयत्न देव भी,
ना प्रेम हिमालय डिगा वे पायेंगे
जिसे कहती हो तुम स्वार्थ,
वही है प्रेम में परमार्थ, सखी
तेरे बिन इस व्याकुल मन की,
कौन सुनेगा,  पीड़ा आर्त, सखी

1 comments:

Meenu gupta said...

Beautiful 👌🏼 keep it up😊👍🏻

अंतर्मन