इत्ती सी नज़्म

Author: Kapil Sharma / Labels:

इत्ती सी नज़्म
बहोत सताती हैं मुझे
लफ़्ज़ों से लड़ती हैं
ख्यालों को तोड़ती, मरोड़ती है
खुद अधूरी सी रहकर,
सीने में रोती हैं
जब कभी तेरा नाम,
बिन शुमार किये,
इसे मुकम्मल करने की
कोशीश करता हूँ
इत्ती सी नज़्म
बहोत सताती हैं मुझे

5 comments:

Sash said...

Really nice expression!!

Kapil Sharma said...

thanks sash :)

एक बोर आदमी का रोजनामचा said...

WAAAAAAAAAAH --------

Kapil Sharma said...

shukriya Muskesh ji :)

Shaizi said...

Simple bt with a deep meaning...nice 1

अंतर्मन