हाँ अगर तू मुस्कराकर कह दे, "बस ऐसा ही है"

Author: Kapil Sharma / Labels:

चाँदनी में नहाता,
खुश मिजाज़ साहिल
गुनगुनाती लहरें
बेमालूम सी
बज़्म में शामिल
न रास्ता कोई
ना मंजिल
ना सबब
ना कोई हासिल
बस तू, मैं
और ये कैफियत
ये ज़िन्दगी का ख्वाब, या ख़्वाबों सी ज़िन्दगी हैं
यकीं अपनी खुशफेहमियों पर कर भी लू मैं
हाँ अगर तू मुस्कराकर कह दे, "बस ऐसा ही है"

4 comments:

Shashiprakash Saini said...

बेहद खूबसूरत रचना

Kapil Sharma said...

shukriya sainiji

एक बोर आदमी का रोजनामचा said...

khoob ------ bahooot khoob ---

Kapil Sharma said...

shukriya Muskesh ji :)

अंतर्मन