ए ख्वाब

Author: Kapil Sharma / Labels:

जब भी सुबह
अलसाकर पलकें खोलता हूँ
ए ख्वाब, तुझे 
उस करवट लेटा देखकर
बेसबब बेवजा ही
मुस्कुरा देता हूँ

यूँ मिलने जहान की,
दौड़ धुप से
घर से कदम बाहर डालता हूँ
ए ख्वाब, तेरी आँखों 
दुआ ए खैरियत देखकर
बेसबब बेवजा ही
मुस्कुरा देता हूँ

पहलु में रात
के जो कुफ्र सबाब से परे
फिर तूझी में सुकूं तलाशता हूँ
ए ख्वाब तुझे
खुद पर चादर सा ओढ़कर
बेसबब बेवजा ही
मुस्कुरा देता हूँ
 
 
 

10 comments:

Eyes said...

खुले बंद आसमान
की परचाइ जो समुन्दर पर गिरे
किनारे पर मै
ए ख्वाब हकीकत में
पैरो के आते जाते कदमो की आहात जान
बेसबब बेवजा ही
मुस्कुरा देता हूँ

Asha Joglekar said...

बहुत सुहाना सा है यह ख्वाब आपका ।

Kapil Sharma said...

thanks EYES

Dhanywaad ASHAji

Yashwant R. B. Mathur said...

जन्माष्टमी की शुभ कामनाएँ।

कल 23/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

Amrita Tanmay said...

शब्द और भाव का अनूठा मेल किया है आपने इस रचना में,बधाई |

सागर said...

shabdo ka sundar samyojan...

विभूति" said...

ख्वाब और आपकी रचना बहुत ही सुन्दर....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खूबसूरत ख्वाब

Anamikaghatak said...

SUNDAR SHABDO KA ISTEMAL KIYA HAI APNE......KHUBSURAT BLOG

Kapil Sharma said...

यशवंत जी, कविता को अपने ब्लॉग पर जगह देने के लिए धन्यवाद

अमृता जी, कविता पसंद करने के लिए आभार

सागरजी, शुक्रिया

थैंक्स, सुषमाजी

thank you संगीता जी

एना जी, हार्दिक आभार

अंतर्मन