इक और चेहरा उतर गया आज फिर नकाब से
क्या, क्या उम्मीद लगाये बैठे थे यार हम आपसे
कैसे कैसे इम्तहान लेता रहा हैं वक़्त?
अदावत निभाता रहा न जाने किस हिसाब से
इक और चेहरा उतर गया आज फिर नकाब से
कितने हसीं पल थे वोह सारे, कितनी प्यारी बातें थी
अब लगाता हैं लौटें हैं, बचकर हम तो एक अजाब से
इक और चेहरा उतर गया आज फिर नकाब से
हकीक़त से बेखबर, बेपरवाह ही रहे, नुक्ता
ज़िन्दगी बसर दी साड़ी, नाहासिल से ख्व्वाब से
इक और चेहरा उतर गया आज फिर नकाब से
अब न पूछो दिल का आलम, इसकी ख़ामोशी का राज़
सारे सवाल गूंगे हो गए, उनके इक जवाब से
इक और चेहरा उतर गया आज फिर नकाब से
रौशन होगा सारा मंजर, रौशन रौशन कायनात,
जल जाने की शर्त लगा बैठा हैं, नुक्ता, आफताब से
आज फिर नकाब से
Author: Kapil Sharma / Labels: ME
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
nuktaa tum saba ho azad raho, aabad raho,
achchi nahi lagate ho bechain se bataab se......
Bahot sahi likha hai dost....
व्यक्ति को तरीक़े से पहचानने की कोशिश नज़र आती है।
Post a Comment