कुछ त्रिवेणियाँ

Author: Kapil Sharma / Labels:

शराब हो, तुम हो, रूमानी सा समाँ  हो
तेरी ग़ज़लों की किताब से महफ़िल यूँ जवाँ  हो

मुद्दत हो गयी, "अज्जू", हमें साथ बैठे।।

***

जाने कितने जाम उतारे, उसने भी और मैंने भी
कितने रचे फलक पे चाँद सितारे, उसने भी और मैंने भी

कमाल है, तेरी गैरमौजूदगी , साकी भी और शायर भी
 

***

धड़कन धड़कन ढूंढा है, रेझा रेझा तलाशा
अब बस साथ है तेरा चेहरा धुन्दला सा

उस रोज़ दिल के साथ और बहोत कुछ टुटा था

***

धड़कन धड़कन ढूंढा है, रेझा रेझा तलाशा
अब बस साथ है तेरा चेहरा धुन्दला सा

उस रोज़ दिल के साथ और बहोत कुछ टुटा था

***

अजब नस्लें आबाद हैं, खुदा तेरे जहान में
शेखचिल्ली मस्त हैं, न जाने किस गुमान में

शाख दीवानी, कंपकपाती हैं, इनके नीचे

***

दिल भी भर आएगा, आँख आंसू भी छलकाएगी
बेमौसम, सेहरा पर मेघा अपनी जुल्फें लहराएगी

धुंधली भले हो जाये यादें, पिछा कहाँ छोडती है?

6 comments:

@ngel ~ said...

धड़कन धड़कन ढूंढा है, रेझा रेझा तलाशा
अब बस साथ है तेरा चेहरा धुन्दला सा

उस रोज़ दिल के साथ और बहोत कुछ टुटा था...

:)

amazing you and Ajit are!! :)

Kapil Sharma said...

thank u

dr.mahendrag said...

Dhundali bhale ho jaye yade picha kahan chodti hai

REALLY VERY GOOD NUKTAAJI, CONGRATULATIONS FOR EXPRESSIONS

Kapil Sharma said...

Thank You Mahendraji :)

दर्पण साह said...

बारिश पूरी बह चुकी थी,
भीगी थीं अब भी छतें कुछ.
पलकें देखीं तुमने मेरी?

Kapil Sharma said...

Ahha Darpanji :)

अंतर्मन