इक ख्याल ज़ेहन में

Author: Kapil Sharma / Labels:

इक ख्याल ज़ेहन में
आधा आधा सा
अधबना, प्यासा
रूठा रूठा सा

सेहरा सा तपता कभी
दरया सा बहता कभी
हदों से बढ़कर दरिंदा कभी
या मस्जिद से उठती
मासूम दुआ सा
इक ख्याल ज़ेहन में
आधा आधा सा

आधी रात को
चौक कर जागते
अधूरे, अधबुझे
अनमने ख़्वाब सा
गहमागहमी में
वक़्त की
थका माँदा सा

मनहूस मेरी तरह
मुझ जैसा अभागा सा
...इक ख्याल ज़ेहन में
...आधा आधा सा

3 comments:

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

आधा ख्याल एक अधूरे ख्वाब जैसा होता है...उस अधूरे ख्वाब मे भी आधा ही मिलन हो तो.. ??

प्रवीण पाण्डेय said...

आधा ही रहने दो । पूरा होते ही रुखसत हो जाता है कमबख्त ।

Kapil Sharma said...

@ pankajji,
dhanywaad :)

@ pravinji
aapse puri tarah sehmat hu

अंतर्मन