उभरते दर्द को वक़्त ज्यादा लगता नहीं
तवील सच मेरा यहाँ टिकता नहीं
इस हयात के रंग ओ रूह में
पहचान बनाने की खातिर
उड़ता फिरता है सच बेआबरू, थमता नहीं
हर चेहरे में तलाश मेरी
ना हासिल ही रहती है
किन कुचों से नक्शु तुझे
तू ख़्वाब ही है, कागज़ पर रुकता नहीं
ये मुमकिन नहीं दुबारा,
मेहरबान हो खुदाया
जो एक बार हो गया,
मौजजा बार बार दिखता नहीं
यूँ तो ज़िन्दगी में,
हर चीज़ में नफा-घाटा
इक दर्द का कारोबार, तेरे
धोखा मुझे देता नहीं
उभरते दर्द को वक़्त ज्यादा लगता नहीं
वक़्त ज्यादा लगता नहीं
Author: Kapil Sharma / Labels: ME
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2 comments:
thnx
उड़ता फिरता है सच बेआबरू, थमता नहीं
हर चेहरे में तलाश मेरी
ना हासिल ही रहती है
किन कुचों से नक्शु तुझे
तू ख़्वाब ही है, कागज़ पर रुकता नहीं
सुंदर शब्दों के साथ.... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....
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