कोई नज़्म बस होने को है

Author: Kapil Sharma / Labels:

फिर से महक उठा हैं
पुरानी खुशुबुओं से पैरहन
कोई नज़्म बस होने को है
हज़ार ख्यालों से हामला हैं ज़ेहन
कोई नज़्म बस होने को है
कुछ यादें बीते अरसे के,
लरज़ लबों पे, पलकों पे सावन
कोई नज़्म बस होने को है
गूँजता मैकदा, हुजूम से रिन्दों के,
बैठे हैं कोने में "नुक्ता"
लिए तन्हा प्यास, तन्हा धड़कन
कोई नज़्म बस होने को है 

5 comments:

dr.mahendrag said...

गूँजता मैकदा, हुजूम से रिन्दों के,
बैठे हैं कोने में "नुक्ता"
लिए तन्हा प्यास, तन्हा धड़कन
कोई नज़्म बस होने को है
सुन्दर कृति मेरी भी बेसबबी देखो कि अब भी है इंतजार, इंतजार,कितना इंतजार, कि कोई नजम बस होने को है.

Kapil Sharma said...

wahh Mahendraji...pasandagi jatane ke liye aabhar

anusia said...

Bahut hi pyari kavita hai.

Anonymous said...

Wow... Wonderful it is..

Kapil Sharma said...

थैंक यू :)

अंतर्मन