Author: Kapil Sharma  / 
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लौट आई है सर्द शामें फिर से
 के ठिठुरने लगे है ठन्डे रिश्ते
 कुछ गर्मी ताप ले हम तुम,
 आओ , लिपट कर सो जायें
... अरसों इस ठौर बहें ना,  
 नव स्वप्नों के कोमल गीत
 सुनकर इक दूजे ही के बोल 
 कुछ देर बहल ले हम तुम  
 आओ , लिपट कर सो जायें
 ... किस देस मेंह बरसें हैं फिर से,
 ये मरुथल तो सुखा ही सुखा
 दो आँसू बुला ले आँखों से,
 खुद अपना दामन भीगा ले हमतुम,
 आओ , लिपट कर सो जायें
 लौट आई है सर्द शामें फिर से
 के ठिठुरने लगे है ठन्डे रिश्ते
 कुछ गर्मी ताप ले हम तुम,
 आओ , लिपट कर सो जायें