एक पुरातन,
महानिर्माण का
अवशेष मात्र था,
भंगुर क्षणों को चुन चुन रखता
मन तन से भंगित,
श्रापित, त्यागित,
भिक्षुणी का भिक्षा पात्र था
यायावर था,
नगर नगर फिरता बादल
सज्जन प्रहरियों
से दुर्लक्षित
"काला हंस" वो,
रचेता के दिवास्वप्न की
छाया मात्र था
विरह व्याकुल,
नवपरिणित रमणी के
मन में जन्मे,
उन्मादों सा वो भी,
अन्धकार में मुस्कुराता
मधुर पाप था
मधुर पाप था
सज्जन प्रहरियों
से दुर्लक्षित
"काला हंस" वो,
रचेता के दिवास्वप्न की
छाया मात्र था
6 comments:
गहन अभिव्यक्ति!
Dhanywaad Manojji
BAHUT HI SUNDAR ABHIWAKTI
shukriya Mahendraji
Behatareen Rachna Kapil ji...
Shukriyaa!!!
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