साहील के रेत पर
निशाँ पैरों के तलाशने,
ये लम्हा बेवक्त घर से निकला था.
कुछ रूठा सा कुछ टुटा सा,
फिर बिखरने या संभलने,
ये लम्हा बेवक्त घर से निकला था.
उस कमरे की एक अलमारी,
यही कही वह छिपती थी,
नादान बेचारा, उसे खोजने
ये लम्हा बेवक्त घर से निकला था.
निशाँ पैरों के तलाशने,
ये लम्हा बेवक्त घर से निकला था.
कुछ रूठा सा कुछ टुटा सा,
फिर बिखरने या संभलने,
ये लम्हा बेवक्त घर से निकला था.
उस कमरे की एक अलमारी,
यही कही वह छिपती थी,
नादान बेचारा, उसे खोजने
ये लम्हा बेवक्त घर से निकला था.
8 comments:
ye lamha bewaqt ghar se nikla tha...
Awesome :)
बहुत खूब ...
thanks @ngel!!!
शुक्रिया गीतजी!!!
आज 15/05/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत सुंदर.....
बधाई.
अनु
बहुत ही सुन्दर अहसास। वाह!
वाह! बहुत खुबसूरत एहसास पिरोये है अपने......
Yahswant ji, Expression, Sunitaji and Sushme ji
Bahot bahot dhanywaad
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