फनकार

Author: Kapil Sharma / Labels:

बड़े खूबसूरत वो घरोंदे बनाता
बड़े मुहतात से उनको सजाता
हर एक जोड़ पे कितने ख्वाब बसाता
हसरतो के रंग शौक से लगाता

फनकार था यकीनन वो बेहतर, बेहतर
हर नक्श में कैसे जोहर दिखाता
बड़ी दिलकश होती तखलीक उसकी
कई गुल अश्कों के उसपे खिलाता

...वो "ताबुतसाज़"... हैं और रहेगा
आखरी ज़रया-ए-सफर  वही तो बनाता

घर

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इक घर बनाना है
सब ही बनाते हैं
खरीददारी कर बाज़ार से
कितने रिश्ते सजाते हैं

जब तक तुम साथ हो

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नब्ज़ थामे रखो थोडी देर और,
देखो एक पल तो बाकी हैं अभी
दौडेगा थोडी दूर अभी ये,
भूल जायेगा दर्द सारे, रंज सारे
मचलेगा नये अरमानो संग अभी
नये ख्वाबो के पर लगाकर,
उड़ने की कोशीश भी करेगा

नादान हैं, मासूम हैं बड़ा,
...जी लेने दो इसे
...जब तक तुम साथ हो

सच्चे...झूठे

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कई सच हैं उसके
एक दुसरे से जुदा
क्या सारे सच हैं
क्या सारे सच, सच हैं
या कुछ सच्चे
और कुछ झूठे
या सारे सच झूठे हैं
...उसकी तो वो ही जाने

यूँही खामोश से

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यूँही खामोश से,
साहिल पर वो दोनों,
ख्वाब बुनते एक दूजे के,
एक दूजे के लिए,
उम्मीद में के कभी तो,
...ये समंदर सुख जायेगा

तेरा आँचल

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बहुत रोया हैं सूरज दिन भर
बहुत लम्बी थी खामोश शामें
उदास उदास थी रात आज भी
चाँद पे ताला लगाया था किसने?
क्यों बेवजह नींदें उचट रही हैं?
क्यों चुबता हैं बिस्तर मुझे?
क्या बात हैं ख्व्वाब सारे
बिलख बिलख कर उठते हैं?
क्यों लापनाह ये नज़रें मेरी
...तेरा ही आँचल तलाशती हैं?

अंतर्मन