इक ख्याल ज़ेहन में
आधा आधा सा
अधबना, प्यासा
रूठा रूठा सा
सेहरा सा तपता कभी
दरया सा बहता कभी
हदों से बढ़कर दरिंदा कभी
या मस्जिद से उठती
मासूम दुआ सा
इक ख्याल ज़ेहन में
आधा आधा सा
आधी रात को
चौक कर जागते
अधूरे, अधबुझे
अनमने ख़्वाब सा
गहमागहमी में
वक़्त की
थका माँदा सा
मनहूस मेरी तरह
मुझ जैसा अभागा सा
...इक ख्याल ज़ेहन में
...आधा आधा सा
इक ख्याल ज़ेहन में
Author: Kapil Sharma / Labels: MEक्षणिकाएं...
Author: Kapil Sharma / Labels: MEथकी थकी सी रात
नींद से बैर मेरा
ज़ेहन में कौन्दते तूफ़ान,
ये बेआवाज़ सवेरा
चुप चुप कटते दिन
उनींदी उदास दोपहर
भारी कदम रास्ते
सर झुकाए शहर
अपलक देखती नज़रें
नजाने कहाँ गुम
सूखे बंजर सैलाब
खोये खोये हम
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