सूरत चाँद की, मेरे महताब सी क्या होगी?
चर्चा उसका रूमानी जितना,
कोई और शह, उस बाब सी क्या होगी?
चैन औ' सुकून नदारद हैं ज़ेहन से
इससे ज्यादा, बामौत, हालत खराब क्या होगी?
महक जो फैली है मेरे घर में इस बार
वहां पर खुशबु-ए-गुलाब क्या होगी?
क्यों पियालों की जरुरत हो अब मुझको,
साक़ी तुझसे बढ़कर शराब क्या होगी?
(बाब= बात)
कोई और शह उस बाब सी क्या होगी?
Author: Kapil Sharma / Labels: MEवक़्त ज्यादा लगता नहीं
Author: Kapil Sharma / Labels: MEउभरते दर्द को वक़्त ज्यादा लगता नहीं
तवील सच मेरा यहाँ टिकता नहीं
इस हयात के रंग ओ रूह में
पहचान बनाने की खातिर
उड़ता फिरता है सच बेआबरू, थमता नहीं
हर चेहरे में तलाश मेरी
ना हासिल ही रहती है
किन कुचों से नक्शु तुझे
तू ख़्वाब ही है, कागज़ पर रुकता नहीं
ये मुमकिन नहीं दुबारा,
मेहरबान हो खुदाया
जो एक बार हो गया,
मौजजा बार बार दिखता नहीं
यूँ तो ज़िन्दगी में,
हर चीज़ में नफा-घाटा
इक दर्द का कारोबार, तेरे
धोखा मुझे देता नहीं
उभरते दर्द को वक़्त ज्यादा लगता नहीं
रकीबों के किस्से
Author: Kapil Sharma / Labels: MEरकीबों के किस्से इस शर्त पे सुनाते है वो,
अश्कों का आँखों में इक कतरा भी ना हो
नश्तर बेदर्दी से जुबां पर चलाते हैं खुद,
ये भी पूछते हैं, कुछ कहते नहीं, क्या बेजुबान हो?
कलाम अपना हमसे लिखाकर, भूल गए, हमराज़
रहम खुदा, मिले तो शक्ल पहचान ले वो
कुछ उफ्ताद ना हो जाये, ज़िक्र पर, खामोश हूँ,
वर्ना नाम कहाँ छोड़ते हैं, अफसाना गो
क्यों बेजार करते हो नहाक नींदें उसकी
गुमाँ सुर्ख आस्थिनों का क्यों उनको होने दो