कितनी बातें हैं, वक़्त कितना कम, कहने के लिए
थोडी देर ठहर जा, रख ले भरम, कहने के लिए
तासीर ए अश्क़ भी हैं बेअसर जिन ज़ख्मों को
तुम ले कर आये हो मरहम कहने के लिए
हर बात रूमानी हो जाती है शायर तेरी दुनिया में,
शाम के आँसू बन जाते हैं शबनम, कहने के लिए
रात को जो तू स्वांग रचाये, उल्फत के, मुहब्बत के,
दिन में नुक़्ता को आती हैं शरम, कहने के लिए
थोडी देर ठहर जा, रख ले भरम, कहने के लिए
तासीर ए अश्क़ भी हैं बेअसर जिन ज़ख्मों को
तुम ले कर आये हो मरहम कहने के लिए
हर बात रूमानी हो जाती है शायर तेरी दुनिया में,
शाम के आँसू बन जाते हैं शबनम, कहने के लिए
रात को जो तू स्वांग रचाये, उल्फत के, मुहब्बत के,
दिन में नुक़्ता को आती हैं शरम, कहने के लिए