सूरत चाँद की, मेरे महताब सी क्या होगी?
चर्चा उसका रूमानी जितना,
कोई और शह, उस बाब सी क्या होगी?
चैन औ' सुकून नदारद हैं ज़ेहन से
इससे ज्यादा, बामौत, हालत खराब क्या होगी?
महक जो फैली है मेरे घर में इस बार
वहां पर खुशबु-ए-गुलाब क्या होगी?
क्यों पियालों की जरुरत हो अब मुझको,
साक़ी तुझसे बढ़कर शराब क्या होगी?
(बाब= बात)
कोई और शह उस बाब सी क्या होगी?
Author: Kapil Sharma / Labels: ME
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2 comments:
Aapki shayari me jo jhalakti hai dil ki baat
aur kisi shayari me wo baat kahan hogi ... :)
Good one!
@ Sanjayji
Bahut Bahut Dhanywaad!!!
@ Somyaa
OWW ye r making me blush
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